जन्मना जायते शूद्रः संस्कारात् भवेत् द्विजः

जन्मना जायते शूद्रः संस्कारात् भवेत् द्विजः


जन्मना जायते शूद्रः
संस्कारात् भवेत् द्विजः।
वेद-पाठात् भवेत् विप्रः
ब्रह्म जानातीति ब्राह्मणः॥
जन्म से मनुष्य शुद्र, संस्कार से द्विज (ब्रह्मण), वेद के पठान-पाठन से विप्र और जो ब्रह्म को जनता है वो ब्राह्मण कहलाता है।

ब्राह्मण का स्वभाव:-
शमोदमस्तपः शौचम् क्षांतिरार्जवमेव च।
ज्ञानम् विज्ञानमास्तिक्यम् ब्रह्मकर्म स्वभावजम्॥
चित्त पर नियन्त्रण, इन्द्रियों पर नियन्त्रण, शुचिता, धैर्य, सरलता, एकाग्रता तथा ज्ञान-विज्ञान में विश्वास। वस्तुतः ब्राह्मण को जन्म से शूद्र कहा है। यहाँ ब्राह्मण को क्रिया से बताया है। ब्रह्म का ज्ञान जरुरी है। केवल ब्राह्मण के वहा पैदा होने से ब्राह्मण नहीं होता।

ब्राह्मण के कर्त्तव्य:-
निम्न श्लोकानुसार एक ब्राह्मण के छह कर्त्तव्य इस प्रकार हैं-
अध्यापनम् अध्ययनम् यज्ञम् यज्ञानम् तथा।
दानम् प्रतिग्रहम् चैव ब्राह्मणानामकल्पयात॥
शिक्षण, अध्ययन, यज्ञ करना, यज्ञ कराना, दान लेना तथा दान देना ब्राह्मण के छह कर्त्तव्य हैं।

ब्राह्मण का व्यवहार:-
ब्राह्मण हिन्दू धर्म के नियमों का पालन करते हैं जैसे वेदों का आज्ञापालन, यह विश्वास कि मोक्ष तथा अन्तिम सत्य की प्राप्ति के अनेक माध्यम हैं, यह कि ईश्वर एक है किन्तु उनके गुणगान तथा पूजन हेतु अनगिनत नाम तथा स्वरूप हैं। जिनका कारण है हमारे अनुभव, संस्कॄति तथा भाषाओं में विविधताए। ब्राह्मण सर्वेजनासुखिनो भवन्तु (सभी जन सुखी तथा समॄद्ध हों) एवम् वसुधैव कुटुम्बकम (सारी वसुधा एक परिवार है) में विश्वास रखते हैं। सामान्यत: ब्राह्मण केवल शाकाहारी होते हैं (बंगाली, उडिया तथा कुछ अन्य ब्राह्मण तथा कश्मीरी पन्डित इसके अपवाद हैं)।

दिनचर्या:-
हिन्दू ब्राह्मण अपनी धारणाओं से अधिक धर्माचरण को महत्व देते हैं। यह धार्मिक पन्थों की विशेषता है। धर्माचरण में मुख्यतया है यज्ञ करना। दिनचर्या इस प्रकार है– स्नान, सन्ध्यावन्दनम्, जप, उपासना, तथा अग्निहोत्र।
अन्तिम दो यज्ञ अब केवल कुछ ही परिवारों में होते हैं। ब्रह्मचारी अग्निहोत्र यज्ञ के स्थान पर अग्निकार्यम् करते हैं। अन्य रीतियां हैं अमावस्य तर्पण तथा श्राद्ध।

संस्कार:-
ब्राह्मण अपने जीवनकाल में सोलह प्रमुख संस्कार करते हैं। जन्म से पूर्व गर्भधारण, पुन्सवन (गर्भ में नर बालक को ईश्वर को समर्पित करना), सिमन्तोणणयन (गर्भिणी स्ज्ञी का केश-मुण्डन)। बाल्यकाल में जातकर्म (जन्मानुष्ठान), नामकरण, निष्क्रमण, अन्नप्रासन, चूडकर्ण, कर्णवेध। बालक के शिक्षण-काल में विद्यारम्भ, उपनयन अर्थात यज्ञोपवीत्, वेदारम्भ, केशान्त अथवा गोदान, तथा समवर्तनम् या स्नान (शिक्षा-काल का अन्त)। वयस्क होने पर विवाह तथा मृत्यु पश्चात अन्त्येष्टि प्रमुख संस्कार हैं।

सम्प्रदाय:-
दक्षिण भारत में ब्राह्मणों के तीन सम्प्रदाय हैं– स्मर्त सम्प्रदाय, श्रीवैष्णव सम्प्रदाय तथा माधव सम्प्रदाय।

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