https://bnthakur101.blogspot.com/search/label/%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%A4%E0%A5%8B%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0?&max-results=5
सनातन संस्कृति / हिन्दू धर्म के 16 संस्कार १६ संस्कार सनातन अथवा हिन्दू धर्म की संस्कृति संस्कारों पर ही आधारित है। हमारे ऋषि-मुनियों ने मानव जीवन को पवित्र एवं मर्यादित बनाने के लिये संस्कारों का अविष्कार किया। धार्मिक ही नहीं वैज्ञानिक दृष्टि से भी इन संस्कारों का हमारे जीवन में विशेष महत्व है। भारतीय संस्कृति की महानता में इन संस्कारों का महती योगदान है। प्राचीन काल में हमारा प्रत्येक कार्य संस्कार से आरम्भ होता था। उस समय संस्कारों की संख्या भी लगभग चालीस थी। जैसे-जैसे समय बदलता गया तथा व्यस्तता बढती गई तो कुछ संस्कार स्वत: विलुप…
निर्वाणाष्टकम / आत्माष्टकम मनोबुद्धयहंकार चित्तानि नाहं, न च श्रोत्रजिव्हे न च घ्राणनेत्रे । न च व्योम भूमिर्न तेजो न वायुः, चिदानन्दरूपः शिवोहं शिवोहम् ॥ १ ॥ न वै प्राणसंज्ञा न वै पंचवायुः, न वा सप्तधातुर्न वा पंचकोषः। न वाक्पाणि पादौ न चोपस्थ-पायुः चिदानन्दरूपः शिवोहं शिवोऽहम् ॥ २ ॥ न मे रागद्वेषौ, न मे लोभमोहौ, मदो नैव मे नैव मात्सर्यभावः। न धर्मों, न चार्थो न कामो न मोक्षः चिदानन्दरूपः शिवोहं शिवोऽहम् ॥ ३ ॥ न पुण्यं न पापं न सौख्यं न दुःखं, न मंत्रो न तीर्थो न वेदा न यज्ञाः। अहं भोजनम् नैव…
शिव स्तुति (भैरवरूप शिव-स्तुति) शंकरं, शंप्रदं, सज्जनानंददं, शैल-कन्या-वरं, परमरम्यं । काम-मद-मोचनं, तामरस-लोचनं, वामदेवं भजे भावगम्यं ॥ १ ॥ कंबु-कुंदेंदु-कर्पूर-गौरं शिवं, सुन्दरं, सच्चिदानंदकंदं । सिद्ध-सनकादि-योगीन्द्र-वृन्दारका, विष्णु-विधि-वन्द्य चरणारविंदं ॥ २ ॥ ब्रह्म-कुल-वल्लभं, सुलभ मति दुर्लभं, विकट-वेषं, विभुं, वेदपारं । नौमि करुणाकरं, गरल-गंगाधरं, निर्मलं, निर्गुणं, निर्विकारं ॥ ३ ॥ लोकनाथं, शोक-शूल-निर्मूलिनं, शूलिनं मोह-तम-भूरि-भानुं । कालकालं, कलातीतमजरं, हरं, कठिन-कलिकाल-कानन-कृशानुं ॥ ४ ॥ तज्ञमज्ञान-पाथोधि-घटसंभवं, सर्वगं…
शम्भुस्तुतिः (श्रीब्रह्मपुराणे शम्भुस्तुतिः) श्रीराम उवाच: नमामि शम्भुं पुरुषं पुराणः नमामि सर्वज्ञमपारभावम् । नमामि रुद्रं प्रभुमक्षयं तं नमामि शर्वं शिरसा नमामि ॥ १ ॥ नमामि देवं परमव्ययं तमुमापतिं लोकगुरुं नमामि । नमामि दारिद्र्यविदारणं तं नमामि रोगपहरं नमामि ॥ २ ॥ नमामि कल्याणमचिन्त्यरुपं नमामि विश्वोद्भवबीजरुपम् । नमामि विश्वस्थितिकारणं तं नमामि संहारकरं नमामि ॥ ३ ॥ नमामि गौरिप्रियमव्ययं तं नमामि नित्यं क्षरमक्षरं तम् । नमामि चिद्रूपममेयभावं त्रिलोचनं तं शिरसा नमामि ॥ ४ ॥ नमामि कारुण्यकरं भवस्य भयंकरं वाऽपि सदा नमामि । न…
शिवस्तुतिः (श्रीस्कनदमहापुराणे कुमारिकाखण्डे) स्कन्द उवाच: नमः शिवायास्तु निरामयाय नमः शिवायास्तु मनोमयाय । नमः शिवायास्तु सुरार्चिताय तुभ्यं सदा भक्तकृपापराय ॥ १ ॥ नमो भवायास्तु भवोद्भवाय नमोऽस्तु ते ध्वस्तमनोभवाय । नमोऽस्तु ते गूढमहाव्रताय नमोऽस्तु मायागहनाश्रयाय ॥ २ ॥ नमोऽस्तु शर्वाय नमः शिवाय नमोऽस्तु सिद्धाय पुरातनाय । नमोऽस्तु कालाय नमः कलाय नमोऽस्तु ते कालकलातिगाय ॥ ३ ॥ नमो निसर्गात्मकभूतिकाय नमोऽस्त्वमेयोक्षमहर्द्धिकाय । नमः शरण्याय नमोऽगुणाय नमोऽस्तु ते भीमगुणानुगाय ॥ ४ ॥ नमोऽस्तु नानाभुवनाधिकर्त्रे नमोऽस्तु भ…
श्रीपरमेश्वरस्तोत्रम् जगदीश सुधीश भवेश विभो परमेश परात्पर पूत पित:। प्रणतं पतितं हतबुद्धिबलं जनतारण तारय तापितकम्॥ 1 ॥ गुणहीनसुदीनमलीनमतिं त्वयि पातरि दातरि चापरतिम्। तमसा रजसावृतवृत्तिमिमं जनतारण तारय तापितकम् ॥ 2 ॥ मम जीवनमीनमिमं पतितं मरुघोरभुवीह सुवीहमहो। करुणाब्धिचलोर्मिजलानयनं जनतारण तारय तापितकम् ॥ 3 ॥ भववारण कारण कर्मततौ भवसिन्धुजले शिव मग्नमत:। करुणाञ्च समर्प्य तरिं त्वरितं जनतारण तारय तापितकम् ॥ 4 ॥ अतिनाश्य जनुर्मम पुण्यरुचे दुरितौघभरै: परिपूर्णभुव:। सुजघन्यमगण्यमपुण्यरुचिं जनतारण तार…
देवों के देव : महादेव देवों के देव महादेव की उपासना सबसे प्राचीन उपासनाओं में से एक है। महाभारत के 'द्रोण पर्व' से ज्ञात होता है कि कृष्ण के परामर्श से अर्जुन ने पाशुपत अस्त्र प्राप्त करने के लिए हिमालय पर जाकर शिव की आराधना की थी। दरअसल, जगत का कल्याण करने वाले भगवान आशुतोष 'सत्यम, शिवम और सुंदरम' के शाश्वत प्रतीक माने जाते हैं। भगवान आशुतोष के कल्याणसुंदरम स्वरूप को ही 'शिवत्व' कहा जाता है। महादेव का यह शिवत्व स्वरूप ही शक्ति के सृजनात्मक रूपांतरण का सूचक है। इस 'शक्ति स्वरूप शिव' के आध्यात्मिक रहस्यों क…
Social Plugin